बीतते समय के साथ
भूलते हुए
अपना गुजरा हुआ कल
हम चलते चले जाते हैं
अनजान पगडंडियों पर
जिनपर छूटे हुए
हमारे कदमों के निशान
या तो बने रहते हैं स्थायी
या वह भी
मिट ही जाते हैं
एक न एक दिन
एक कहानी बनकर
कभी किसी स्वप्न में ..
किसी और वास्तविकता में
याद तो आते ही हैं
हमारे पूरे-अधूरे रास्ते
जिनपर चलकर
किसी बीते दौर में
हमको मिली ही होगी
अपनी मंजिल
इसलिए
भूलना चाहकर भी
हमारे अवचेतन से
नहीं निकलते
भूले हुए रास्ते
और बीता हुआ कल।
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हमारे अचेतन से नहीं निकलते
ReplyDeleteभूले हुए रस्ते और बीता हुआ कल
यथार्त महोदय
भावपूर्ण रचना
यकीनन कोई न कोई मंज़िल मिली है हरेक को अतीत में भी, पर असली मंज़िल की तलाश लिए जाती है आगे ही आगे
ReplyDeleteबिल्कुल सही । यादें तो मन में रहती है हैं ।
ReplyDeleteखनकते स्वर में सुन्दर रचना को सुनना और पढ़ना भी अच्छा लगा।
ReplyDeleteठीक कहा आपने।
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