कितना कुछ लिख डाला
और कितना लिखना बाकी है
शब्दों के मयखाने में
और कितना पीना बाकी है।
करता कोशिश कुछ कहने की
लेकिन सुनना बाकी है
बन जाए जिनसे कोई कविता
वो अक्षर चुनना बाकी है।
देखो बसंत की इस हवा को
और कितना बहना बाकी है
दूर नहीं दोपहर जेठ की
बस दौर बदलना बाकी है।
10022022
बहुत सटीक,सुंदर सराहनीय कृति ।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (११ -०२ -२०२२ ) को
'मन है बहुत उदास'(चर्चा अंक-४३३७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह! वाक़ई शब्दों में रस की खान है बस पीने का हुनर चाहिए और यह कि सुनते-सुनते ही कहने का ढंग आ जाता है, वक्त बदलते देर नहीं लगती, अभी निकला सूरज अभी ढल जाता है
ReplyDeleteदेखो बसंत की इस हवा को
ReplyDeleteऔर कितना बहना बाकी है
दूर नहीं दोपहर जेठ की
बस दौर बदलना बाकी है।
बिल्कुल सही कहा आपने!
बहुत ही शानदार सृजन...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकाव्यपाठ बहुत ही बढ़िया है 👌👌
ReplyDeleteअच्छा लगा सुन कर. नवीन प्रयोग.
ReplyDeleteसुनने का आनंद ही कुछ और है.
शुभकामनाएं.
"कितना कुछ लिख डाला
ReplyDeleteऔर कितना लिखना बाकी है
शब्दों के मयखाने में
और कितना पीना बाकी है। "
वाह क्या बात है !