यूं!
जैसे शिखर से
मिलने के बाद
धीरे-धीरे
सूरज भी खोता है
अपना यौवन
यूं!
जैसे चरम से
मिलने के बाद
शेष रहता है
सिर्फ शून्य
यूं!
जैसे प्रतीक्षा के
दीर्घ अंतराल के बाद
प्रारब्ध का संघर्ष
निकल पड़ता है
विजयपथ की ओर
शायद!
ठीक वैसे ही
महत्त्वाकांक्षाओं
और अपेक्षाओं के
बदलते मौसमों के साथ
पूर्णविराम की राह पर
गर रख सका
पहला कदम
तो मेरे हिस्से का
अवशेष नाम
शब्दों के झुरमुट में
गुमशुदा हो ही जाएगा
एक अदृश्य अपूर्ण
बिन्दु बनकर!
12032022
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (१३ -०३ -२०२२ ) को
'प्रेम ...'(चर्चा अंक-४३६८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशब्दों के झुरमुट में, वाह! निराली व्यंजना।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
हर वस्तु बदलती है हर मंजिल भी एक दिन पड़ाव ही बन जाती है, भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता
ReplyDeleteसुंदर, सराहनीय सृजन ।
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