एक भूले हुए दिन
यहीं कहीं
किसी कोने में
मैंने रख छोड़े थे
दो पल
खुद के लिए।
सोचा था-
जब कभी मन
उन्मुक्त होगा
किसी खिले हुए गुलाब की
सब ओर फैली
खुशबू की तरह
तब उनमें से
एक पल चुराकर
महसूस कर लूँगा
जेठ की तपती दोपहर में
थोड़ी सी ठंडक।
लेकिन
भागमभाग भरे
इस जीवन में
कितने ही मौसम
आए और गए
कोने बदलते रहे
मगर वो दो पल
अभी भी वैसे ही
सहेजे रखे हैं
जीवन भर की
जमा पूंजी की तरह।
18042022
सुंदर रचना , वाकई जीवन बीतता रहता है और हम जीना ही भूल जाते हैं
ReplyDeleteAwesome
ReplyDeleteमगर वो दो पल
ReplyDeleteअभी भी वैसे ही
सहेजे रखे हैं
जीवन भर की
जमा पूंजी की तरह।
वाकई सहेज कर रखने चाहिए जीवन के वे दो पल...
बहुत सुन्दर
लाजवाब सृजन।
बहुत सुंदर सृजन उससे भी सुंदर प्रस्तुति,
ReplyDeleteसचमुच सहेजे पल जमा पूंजी ही तो है।
उन्हें वापस जी नहीं सकते पर वो एक यादगार थाती होते हैं।
समय के साथ दौड़ती ज़िंदगी से कब चुरा पाते हैं वह पल जो स्वयं के लिए सहेज कर रखे थे।
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी सृजन।
प्रभावी वाचन।
सादर