12 May 2022

तो कैसा हो?

मन 
कोरे कागज़ की तरह 
बिल्कुल खाली 
और नीरस हो 
तो कैसा हो?
शायद वैसा 
जैसा जीवन की देहरी पर 
पहला कदम रखते ही 
किसी नवजात का होता है 
या फिर 
किसी निर्मोही आवरण में 
कोई अपवाद हो
तो कैसा हो?
स्वाभाविक भेदों की तरह 
बिखरे रह कर भी 
गर शब्द निष्कपट हों 
तो कैसा हो?

-यशवन्त माथुर©
08052022 

8 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१३-०५-२०२२ ) को
    'भावनाएं'(चर्चा अंक-४४२९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत सुंदर।

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  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता का प्रभावशाली वाचन।

    सादर।

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  4. जैसा जीवन की देहरी पर
    पहला कदम रखते ही
    किसी नवजात का होता है
    मन अगर खाली हो तो....
    सही कहा।
    बहुत ही सुंदर सृजन

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  5. मर्म को छूती बहुत मार्मिक रचना प्रभावी वाचन।
    सादर

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  6. बहुत सुन्दर यशवंत भाई! आपका ये ब्लॉग पहली बार पढ़ा. पहले शायद कोई और ब्लॉग होता था

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    1. मधुरेश जी! ब्लॉग यही था, बस नाम और डोमेन बदल दिया है। पहले इसका नाम 'जो मेरा मन कहे' था।

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  7. बेहतरीन सृजन।
    एक समय पश्चात मन कोरे कागज सा हो जाता है न गिला ना सिकवा न क्यों कैसे के प्रश्न।
    सादर

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