(सुनने के लिए कृपया पधारें: https://youtu.be/p9QVmeMM4ek)
बरसात!
अब नहीं रही
पहले जैसी
बचपन जैसी
अल्हड़-
बेबाक-
खुशगवार
देहरी पर
जिसका
पहला कदम पड़ते ही
तन के साथ
मन भी झूम उठता था
बादलों की गरज
और रिमझिम के साथ
कहा और लिखा जाने वाला
एक-एक शब्द
नई परवाज़ के साथ
रचा करता था
इतिहास के
नए पन्ने।
बरसात!
अब नहीं लाती
खुशियां
लाती है तो सिर्फ
गंदी-बदबूदार नफरत
जिसे बहने का रास्ता
अगर मिल जाता
तो मंजिल तक
जाने वाला रास्ता
नहीं होता
ऊबड़-खाबड़
और गड्ढे दार।