हो साहस जब तन और मन में
क्यों सच से मुख मोड़ें हम
टूट कर जो है बिखर रहा
आओ भारत को जोड़ें हम।
बहुत कर लिया हिन्दू-मुस्लिम
बहुत हो गईं खाप की बातें
मुद्दे अपने खुद ही चुन लो
कर लो अपने आप की बातें।
इधर देखो महंगाई बहुत है
उधर बढ़ रही बेरोजगारी
आमद अठन्नी, खर्च रुपैया
कैसे चले जीवन की गाड़ी?
मजदूर-किसान आधार हमारा
प्रगति पथ का हर पल साथी
लेकिन पूंजी समेट बन रहे
कुछ लोग बड़े महलों के वासी।
70 साल का बना बनाया
मत सस्ते में लुटने दो
अस्मिता की सांसें टूट रहीं
उसका दम मत घुटने दो।
फिर से आदिम युग में लौटें
या समय पर संभलें हम
अपनी साझी विरासत सहेजें
आओ भारत को जोड़ें हम।
भारत को तोड़ तो इस सीमा तक दिया गया है आदरणीय यशवंत जी कि इसे जोड़ना अब एक अत्यन्त महती कार्य है। आपकी इस कविता का संदर्भ मैं ही नहीं, सभी समझ सकते हैं और इसीलिए आपकी इस पोस्ट पर टिप्पणियां मुश्किल से ही आएंगी। लेकिन आपसे मेरी एक शिकायत है - एक बहुत ही संवेदनशील मामले पर बाक़ी लोगों की तरह आपने भी कुछ नहीं कहा। बाक़ी ब्लॉगर (यहाँ तक कि महिलाएं भी) तो अपनी राजनीतिक विचारधारा एवं धार्मिक भेदभाव युक्त सोच के कारण चुप्पी साधे बैठे हैं लेकिन आप क्यों ख़ामोश हैं ?
ReplyDeleteसर! संवेदनशील मुद्दों पर मैं खामोश नहीं रहता। जब भी विचार मन में आते हैं, लिखता जरूर हूँ। उस मुद्दे पर फ़ेसबुक पर काफी कुछ शेयर किया भी है। ब्लॉग पर लिखने में एक अलग तरह की गंभीरता और एकग्रता की जरूरत होती है जो कार्यालयीन व्यस्तता की वजह से फिलहाल कुछ कम है।
Deleteतन और मन में साहस हो तो कुछ भी सम्भव है, हरेक को अपना योगदान देना है भारत को आगे ले जाने में. देशभक्ति से परिपूर्ण सुंदर रचना !
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-9-22} को "श्रद्धा में मत कीजिए, कोई वाद-विवाद"(चर्चा अंक 4549) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
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ReplyDeleteयशवंत माथुर जी के भारत जोड़ो वाले सन्देश में राहुल भैया का प्रचार-प्रसार छुपा है.
Deleteन तो पिछले 67 सालों में वो काम हुआ जो कि होना चाहिए था और न ही अब के 8 सालों में वो काम हुआ है जिसका कि दावा किया जा रहा है.
पदयात्रा के माध्यम से देश जोड़ने की बात गांधी जी के दौर में उचित थी पर आज तो वो नौटंकी है.
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पिछले 67 सालों में जो हुआ, 8 सालों से उसी को बेचा जा रहा है। अगर यह नौटंकी है तो आदरणीय आडवाणी जी की रथयात्रा भी कोई कम नौटंकी नहीं थी।
Deleteसुंदर भाव लिए सार्थक रचना।
ReplyDeleteपर इसमें सफलता का प्रतिशत अनिश्चित है, फिर भी सभी को प्राण प्रण से देश हिताय कुछ करने का जज्बा तो होना ही चाहिए।
वन्दे मातरम।
सुंदर सृजन
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