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16 November 2022

कह दो मन की बातों को



इससे पहले कि प्रलय आकर,
बंद कर दे सब दरवाजों को।
इससे पहले कि पलकें खुलकर
भूलें सारे ख्वाबों को।
कह दो मन की बातों को।।

इससे पहले कि सुबह आ कर
मिटा दे बीती शामों को
इससे पहले कि साथ छूटे
कुछ पल थाम लो हाथों को।
कह दो मन की बातों को।

इससे पहले कि दर्पण टूटे
बह जाने दो आंसु को।
इससे पहले कि किरचे बिखरें
फैला दो अपनी बाहों को।
कह दो मन की बातों को।

इससे पहले कि तस्वीर बनो
बन जाने दो तकदीरों को
ठुकराए जाने के पहले
लिख दो प्रेम की तकरीरों को।

इससे पहले कि सावन बरसे
पत्तों को झर जाने दो।
कह दो मन की बातों को।
.
- यशवन्त माथुर©
16112022

06 November 2022

नहीं जानता....

नहीं जानता 
कि मेरा अंतर्मन 
कब-क्या-कहाँ 
कैसे 
कहीं उड़ जाना चाहता है
इस लोक की परिधि में 
उस लोक का 
वास्तविक आभास कर 
गहरे काले 
अंतरिक्ष में हर तरफ 
छिटके हुए 
शब्दों-वर्णों को सहेजकर  
बिना वजह  
बिना किसी 
संदर्भ-अर्थ 
और 
बिना किसी व्याख्या के ही 
न जाने क्यों 
उजले पन्नों पर 
स्याह होकर
बिखर जाना चाहता है।  
नहीं जानता
कि विकार होते हुए भी 
निर्विकार होने की 
आत्ममुग्धता का 
सुख भोग कर 
मेरा अंतर्मन 
अपनी कल्पना के 
न जाने किस चरम पर 
क्या कहना 
और क्या 
लिखवाना चाहता है... 
बस जानता है 
तो सिर्फ इतना 
कि 
खुद के चाहने भर से 
पल भर में ही 
वह घूम सकता है
सूक्ष्मतम से भी सूक्ष्म 
किसी 
असीम बिन्दु के 
चारों ओर। 

-यशवन्त माथुर©
29092022
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