काश!
समय को बदल पाता
या उससे कुछ कह पाता
गर मानव रूप में होता, तो
लग कर गले
आँखों से बह पाता।
काश!
कुछ ऐसा लिख पाता
जिसमें इतिहास
सिमटा होता
पुरा पाषाण से वर्तमान तक
समय का हर हिस्सा होता
छूटा न कोई किस्सा होता।
काश!
थोड़ा थम पाता
प्रलय का आभास पाकर
जीवन के हर अभ्यास में
काश!
समय को बदल पाता।
.
-यशवन्त माथुर©
29012023