वो
जो जहाजों में उड़ती हैं
जंगों में भिड़ती हैं
साहस के
कीर्तिमान बनाकर
हर मैदान को जीतती हैं ...
आज बैठी हैं
पालथी मारकर
अवशेष
लोकतंत्र की देहरी पर,
सिर्फ
इस उम्मीद में
कि
हममें से कोई
अगर जाग रहा हो ....
अपने कर्मों से
अगर न भाग रहा हो ..
तो ऋचाओं , सूक्तों और श्लोकों
की परिधि से बाहर निकल कर
सिर्फ इतना मान ले
और मन में ठान ले -
वो बेटियाँ किसी और की नहीं
दंगलों की मिट्टी के हर कण की हैं
देश के गौरवशाली हर क्षण की हैं
लेकिन दुर्भाग्य!
आँख पर काली पट्टी बांधे
हम
नए भारत के लोग
ले चुके हैं शपथ
सिर्फ
अन्याय के साथ की।
30042023