29 April 2023

किससे कहूँ...?

किससे कहूँ...? 
कि गुजरते वक़्त के किस्सों में, 
अपना हिस्सा मांगते-मांगते थक गया हूँ।  

किससे कहूँ...? 
कि अस्वीकृति को स्वीकार करते-करते, 
जिस राह चला था उससे भटक गया हूँ।

किससे कहूँ...? 
कि कभी गाँव था, अब शहर बनते-बनते 
गहरी नींव के अंधेरे में उजाले को तरस गया हूँ।  

किससे कहूँ...? 
कि आदम हूँ तो देखने में 
ज़माने ने जम के मारा, बेअदब हो गया हूँ। 

-यशवन्त माथुर©
29042023

3 comments:

  1. अपनी-सी लगती है यह अभिव्यक्ति यशवंत जी। सम्भवतः प्रत्येक पीड़ित का स्वर कुछ ऐसा ही होता है।

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  2. अत्यन्त सुन्दर प्रस्तुति 🌟 हमेशा इसी तरह आगे बढ़ते रहो सफलता प्राप्त होगी thank you धन्यवाद

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  3. किसी ने कहा है, कहो उसी से जो कहे न किसी से, माँगो उसी से जो दे दे ख़ुशी से

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