मुट्ठी भर दवाएं दर्द मिटा तो सकती हैं, मगर
उस दर्द के कड़वे सबक बाकी रह ही जाते हैं।
यूं हम को लगता है अब चलेंगे सीना तान कर
अनचाहे वक्त की बैसाखी बन ही जाते हैं।
भले बे नतीज़ा रहे आखिरी पल, लेकिन
बनके तस्वीर दीवार पे सज ही जाते हैं।
यशवन्त माथुर
24062023