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26 August 2023

क्या कोई समझेगा ......?

क्या कोई 
समझ पाएगा
उस मासूम मन का
अंतर्द्वंद्व 
जिसका आवरण
बंटा हुआ है
अनंत मानव निर्मित
व्यवहारों में।
क्या कोई 
समझा पाएगा
उस मासूम
कोमल चेहरे का दोष
जिस पर पड़ते 
चांटों की आवाज़ से
गूंजते 
सामाजिक माध्यमों ने ही
जन्म दिया है
इस वैमनस्यता को।
नहीं
कोई नहीं समझेगा
उसका दर्द
कोई नहीं समझाएगा
परिणाम
इस भयावहता के
क्योंकि
हमारे ज्ञान
हमारी संस्कृति से 
ऊपर हो चले 
पूर्वाग्रहों के बादल
छंटेंगे
अवश्यंभावी
परिवर्तन और
नई क्रांति के 
बाद ही।

-यशवन्त माथुर©
www.yashpath.com
26082023

15 August 2023

प्यासा भूखा पंद्रह अगस्त.........-यश मालवीय ©


सुविख्यात कवि एवं रचनाकार आदरणीय यश मालवीय जी की ताजा कविता

सूखा सूखा पंद्रह अगस्त
प्यासा भूखा पंद्रह अगस्त

मर गया आंख का पानी है
किस्सा किस्सा बलिदानी है
हंसते से महल दुमहले हैं
टूटी सी छप्पर छानी है

पेशानी चिन्ता से गीली
रूखा रूखा पंद्रह अगस्त

फिर संविधान की बातें हैं
भारत महान की बातें हैं
रमचरना का चूल्हा ठंडा
बस आन बान की बातें हैं

वंदन करता आज़ादी का
हारा चूका पंद्रह अगस्त

खादी में सब कुछ खाद हुआ
तब कहीं देश आज़ाद हुआ
कल जिसको गोली मारी थी,
उसका ही ज़िंदाबाद हुआ

फिर घाव पुराना मुंह खोले
दिल में हूका पंद्रह अगस्त

मत कहो इसे सरकारी है
ये तो तारीख़ हमारी है
पर लाल क़िला ख़ुद ख़ून पिए,
जगमग जगमग तैयारी है

ये किसने भाषण में भर भर
मुंह पर थूका पंद्रह अगस्त ।

-यश मालवीय ©

13 August 2023

मजदूर हूं, मजबूर नहीं

कल का हिसाब क्या रखूं
आज का कुछ पता नहीं।
बेवजह खफा होते हैं वो
जब की कोई खता नहीं।

यूं बैठे-ठाले दौरों के इस दौर में
खानाबदोश हूं चलते फिरते ठौर में।

फिर भी जो मैं हूं, मैं ही हूं आखिर।
दुनियावी फितरतों में कोई फकीर नहीं।

ये और बात है कोल्हू का बैल हूं, माना।
मजदूर हूं अदना सा, लेकिन मजबूर नहीं।

-यशवन्त माथुर©
08072023
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