कल का हिसाब क्या रखूं
आज का कुछ पता नहीं।
बेवजह खफा होते हैं वो
जब की कोई खता नहीं।
यूं बैठे-ठाले दौरों के इस दौर में
खानाबदोश हूं चलते फिरते ठौर में।
फिर भी जो मैं हूं, मैं ही हूं आखिर।
दुनियावी फितरतों में कोई फकीर नहीं।
ये और बात है कोल्हू का बैल हूं, माना।
मजदूर हूं अदना सा, लेकिन मजबूर नहीं।
-यशवन्त माथुर©
08072023
वाह ! बेहतरीन पेशकश
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