यूं तो
40 पार के कई पुरुष
पा चुके होते हैं
मनचाहा मुकाम
लेकिन उनमें भी
कुछ रह ही जाते हैं
अधूरी इच्छाओं को साथ लिए
क्योंकि उनके संघर्ष
उनकी महत्वाकांक्षाओं से
कहीं अधिक बड़े होते हैं
जिनकी पूर्णता की जद्दोजहद में
वो उठते हैं- गिरते हैं
गिरते हैं-उठते हैं
40 पार के संघर्षशील पुरुष
अपने सफल हम उम्रों के
सुफल देखते हुए
बुनते ही रह जाते हैं
कुछ ख्वाब
जिनका पूर्ण होना
असंभव ही होता है
काल के इस पड़ाव पर।
20 दिसंबर 2023
-एक निवेदन-
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सुन्दर
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा आपने यशवन्त जी
ReplyDeleteवाह! सुन्दर और सटीक।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह. बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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