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10 December 2023

वक़्त के कत्लखाने में-23

डर है 
कि कहीं 
जश्न के जलसों 
कहीं 
ग़म की बातों के साथ  
आकार लेते 
नि:शब्द से शब्द 
कुछ कहने की 
जद्दोजहद करते हुए 
कैद ही न रह जाएं 
हमेशा के लिए 
वक़्त के कत्लखाने में। 
 

-यशवन्त माथुर©
10122023 

3 comments:

  1. मुक्ति की चाह बनी रहे बस इतना ही काफ़ी है

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  2. बहुत सुंदर

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