अनिश्चित जीवन
कब थम जाए
कब
स्मृतियों के अवशेष
दे जाए
कहा नहीं जा सकता।
कहा नहीं जा सकता
कि कब
ये शब्द लिखती हुई उंगलियां
कांपने लगें
होठ थरथराने लगें
आंखें प्रिय को ढूंढने लगें
और सांसें
उखड़ने लगें।
कहा नहीं जा सकता
कि कब
सुबह एक पल में बदल जाए
सूर्योदय के साथ ही
सूर्यास्त भी
दस्तक दे जाए।
कहा नहीं जा सकता
कि कब
अपनी धुरी पर घूमती धरती
किसी धूमकेतु से टकराए
और
पल दर पल
बीतता हुआ
समय पुनः भटक कर
अपना इतिहास दोहराए।
कहा नहीं जा सकता
कि
इस यशपथ पर
कुछ भी
कभी भी
हो सकता है घटित
जो इसे बदल दे
और ले जाए
यक्ष प्रश्नों से भरे
किसी अदृश्य
एकांत पथ की ओर।
11 फरवरी 2024
एक निवेदन-
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वाक़ई जीवन में कब क्या घटने वाला है, कहा नहीं जा सकता, किंतु बहुत हद तक हमारा कल हमारे आज पर ही निर्भर होता है, जैसे कि हमारा आज हमारे बीते हुए कल पर
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
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