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15 March 2024

हम सब सो रहे हैं....

लगता है
जैसे इस मतलबी दुनिया में
अपने भूत
और भविष्य को भूल कर
सिर्फ वर्तमान को ढो रहे हैं
गहरी नींद के आगोश में
हम सब सो रहे हैं।

नहीं मतलब इससे 
कि क्या हो रहा है-
क्या नहीं 
सिरहाने तकिये में दबे 
सपने खो रहे हैं 
गहरी नींद के आगोश में
हम सब सो रहे हैं।

यह और बात है 
कि दिन 
भले शवाब पर हो 
निहत्थे दरख्त भी 
हर सू  रो रहे हैं 
गहरी नींद के आगोश में
हम सब सो रहे हैं।

कहीं बेकारी-भूख 
औ मुफलिसी के 
इस अंधे दौर में 
बांधे आँखों पे पट्टी 
क्या नींव में बो रहे हैं?
गहरी नींद के आगोश में
हम सब सो रहे हैं।

-यशवन्त माथुर©
15 मार्च 2024

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7 comments:

  1. सही है, पर अब जागने का वक्त आ गया है

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  2. सुंदर रचना

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  3. सच ही है, एक तंद्रा में जिए जा रहे हैं लोग !

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  4. वाह, भावपूर्ण

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