उभरे मन में लेकिन,
समझे न गए
शब्द जो लिखे न गए।
अंतस खुश हो या उदास हो,
भूख हो या प्यास हो,
ख्याल सांचों में ढले न गए,
शब्द जो लिखे न गए।
अधरों तक आकर भी,
रूह को करीब पाकर भी,
रहे अव्यक्त ही, कहे न गए,
शब्द जो लिखे न गए।
काल चक्र से हार कर,
उम्र के हर पड़ाव पर,
संकोच से उबरे न गए,
शब्द जो लिखे न गए।
अवचेतन कारा की कैद से,
शमशान में मुक्ति पाकर,
राख होते अंग प्रत्यंग की तरह,
पंच तत्व में मिलते ही गए,
शब्द जो लिखे न गए।
-यशवन्त माथुर©
05 मई 2024
05 मई 2024
एक निवेदन-
इस ब्लॉग पर कुछ विज्ञापन प्रदर्शित हो रहे हैं। आपके मात्र 1 या 2 क्लिक मुझे कुछ आर्थिक सहायता कर सकते हैं।
मेरे अन्य ब्लॉग
बहुत सुंदर शब्द संयोजन
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसुंदर सृजन, जो लिखे नहीं गये उन शब्दों की झलक यहाँ मिल रही है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDelete