वो!
जो
नौतपा की
झुलसाने वाली गर्मी में
चरम बिंदु को छूते
ताप के मान को
अपनी नियति जान कर
कंक्रीट के जंगलों में बसे
आधुनिक आदिमानवों की
विद्युत पूर्ति करने को
अपने अस्तित्व से खेलते हुए
अपशब्दों को झेलते हुए
चढ़ जाता है
लोहे के
ऊंचे दहकते खंबों पर
यह जानते हुए भी
कि यह गलती उसकी नहीं
बल्कि
उन सभी की है
जो
मानकों को
अतिक्रमित कर
आनंद लेते हैं
शीतल
वात अनुकूलन का।
वो!
जो
अतिवृष्टि
और घनघोर शीतलहर में
पसीने से सराबोर होकर
उपभोक्ता के मान की
सेवा करते हुए
झेलता है चीरहरण
अपने मान का
सम्मान का।
वो!
जो हर मौसम में
अपने कर्तव्यपथ पर
निलंबन और बर्खास्तगी की
तलवार की धार पर
सधे कदम रखकर
सिर्फ अपनी
सफल संविदा के लिए
रहता बेचैन है-
लाइनमैन है!
.
✓यशवन्त माथुर©,
31मई 2024- एक निवेदन-
इस ब्लॉग पर कुछ विज्ञापन प्रदर्शित हो रहे हैं। आपके मात्र 1 या 2 क्लिक मुझे कुछ आर्थिक सहायता कर सकते हैं।
मेरे अन्य ब्लॉग
सुन्दर
ReplyDeleteएक लाइनमैन के जीवन की अति कठोर चर्या को अति प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है, ऐसे न जाने कितने कर्मठ श्रमिकों के बल पर चल रही है यह दुनिया
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDelete