मन की देहरी पर
लिखे कुछ अल्फाज़
जब उसे लांघ कर
परिकल्पना के
सामने आते हैं....
संकोच से
संकुचित हो जाते हैं
सिर्फ ये सोचकर
कि अगर उन्हें कह दिया गया
किसी से
तो क्या होगा?
क्या तूफान आएगा...?
या बनी रहेगी...
शांति?
या कि बस
कलम की नोंक तक
आने के पहले ही
उन्हें उड़ कर
कहीं खो जाना होगा
समय रेखा के
उसपार की
अदृश्य सर्जना में।
✓यशवन्त माथुर©
06/09/2024
सुन्दर
ReplyDeleteतूफ़ान के डर से और शांति की चाह में न जाने कितने स्वप्न साकार होने से रह जाते हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 8 आक्टूबर 2024 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
वाह, अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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