06 October 2024

देहरी पर अल्फ़ाज़ ......

मन की देहरी पर
लिखे कुछ अल्फाज़ 
जब उसे लांघ कर
परिकल्पना के
सामने आते हैं....
संकोच से
संकुचित हो जाते हैं
सिर्फ ये सोचकर
कि अगर उन्हें कह दिया गया
किसी से
तो क्या होगा?
क्या तूफान आएगा...?
या बनी रहेगी...
शांति?
या कि बस
कलम की नोंक तक 
आने के पहले ही
उन्हें उड़ कर
कहीं खो जाना होगा
समय रेखा के
उसपार की
अदृश्य सर्जना में।

✓यशवन्त माथुर©
06/09/2024

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