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29 December 2024

'छोटू'

वो 
जिसे हम 
कभी 'छोटू' कहते हैं
कभी 'रामू-श्यामू' कहते हैं
होता है धुरी
उस एक चाक की
जो घूमती है
उसकी छोटी सी कमाई के
इर्द-गिर्द।
हम 
कभी नहीं सोचते
उस छोटू की 
उम्र के बारे में
न उठाते हैं कभी जहमत
उससे बात करने की
क्योंकि हमारी सोच
संकुचित ही रहती है
एक छोटे से कुल्हड़
या प्याले में भरी
गर्मागर्म चाय की 
चुस्कियों के दायरे में
जिसके बाहर
अगर कभी हमने सोचा
तो उतरते देर न लगेगी 
हमारी आंखों के सामने टंगा 
सभ्यता का 
सफेद पर्दा।
✓यशवन्त माथुर©
27 12 2024


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20 December 2024

अधिकार हूं.......

फैशन नहीं
विचार हूं
जन मन का 
स्वीकार हूं।

बहुजन का
गौरव हूं
अन्याय का
प्रतिकार हूं।

मैं अंबेडकर हूं...
संविधान हूं....
समता का
अधिकार हूं।

✓यशवन्त माथुर©
20 दिसंबर 2024


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12 December 2024

उतार लूं अपने आप को......

बजाय इसके कि 
दिन के शोर में दब जाए आवाज।
ये अच्छा होगा 
कि सन्नाटे का साज़ 
झकझोर दे रात को।

इसके पहले कि नींद आए
और सो जाऊं मैं।
ये अच्छा होगा कि दिन में ही
समझूं हर सपने की बात को।

बजाय इसके 
कि समझ न आए
यहां अपना किरदार
ये अच्छा होगा कि 
पर्दे से उतार लूं अपने आप को।
.
✓यशवन्त माथुर©
10122024 
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