बजाय इसके कि
दिन के शोर में दब जाए आवाज।
ये अच्छा होगा
कि सन्नाटे का साज़
झकझोर दे रात को।
इसके पहले कि नींद आए
और सो जाऊं मैं।
ये अच्छा होगा कि दिन में ही
समझूं हर सपने की बात को।
बजाय इसके
कि समझ न आए
यहां अपना किरदार
ये अच्छा होगा कि
पर्दे से उतार लूं अपने आप को।
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✓यशवन्त माथुर©
10122024
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सुन्दर
ReplyDeleteवाह ! सुंदर बोध देती पंक्तियाँ
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