20 December 2024

अधिकार हूं.......

फैशन नहीं
विचार हूं
जन मन का 
स्वीकार हूं।

बहुजन का
गौरव हूं
अन्याय का
प्रतिकार हूं।

मैं अंबेडकर हूं...
संविधान हूं....
समता का
अधिकार हूं।

✓यशवन्त माथुर©
20 दिसंबर 2024


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12 December 2024

उतार लूं अपने आप को......

बजाय इसके कि 
दिन के शोर में दब जाए आवाज।
ये अच्छा होगा 
कि सन्नाटे का साज़ 
झकझोर दे रात को।

इसके पहले कि नींद आए
और सो जाऊं मैं।
ये अच्छा होगा कि दिन में ही
समझूं हर सपने की बात को।

बजाय इसके 
कि समझ न आए
यहां अपना किरदार
ये अच्छा होगा कि 
पर्दे से उतार लूं अपने आप को।
.
✓यशवन्त माथुर©
10122024 
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29 November 2024

परछाई और मैं

अकेले चलते-चलते
अपनी परछाई से 
बातें करते-करते
अनंत युगों से
करता आ रहा हूं पार
एक समय चक्र से 
दूसरे समय चक्र को
लेकिन पा नहीं पा रहा
उस अंतिम कोर को
जिस पर समाप्त होती हो सीमा
चलते जाने की।

यूं तो मुझे पता है
कि परछाई का साथ होना
मेरा प्रारब्ध है
लेकिन फिर भी
डरता हूं-
कि 
मेरी महत्वाकांक्षा ने
अगर कर लिया अतिक्रमण
मेरी कर्मशीलता का
तो क्या होगा?
क्या मैं चल पाऊंगा
ऐसे ही निर्बाध
या कि गतिअवरोधक
आ आ कर देते जाएंगे
कुछ सबक
जिनको 
दिल और दिमाग पर 
मैं रोज़ ढोता जाऊंगा
और क्या मिल पाऊंगा
क्षितिज से?
और क्या
समय की असीमता को छूकर
मुझे हो सकेगा एहसास
उस निर्वात का
जिसके लिए 
करता आ रहा हूं तपस्या
युगान्तर से
युगों के चरम को पाने की।

✓ यशवन्त माथुर ©
29112024

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31 October 2024

दीप जलता रहे

हमारे चारों ओर के
इस घने अंधेरे में 
समय थोड़ा ही हो 
भले उजेला होने में 

विश्वास आत्म का 
आत्म पर यूं ही बना रहे
साकार हर स्वप्न 
सदा होता रहे

अपने हर सरल - 
कठिन रूप में
जीवन जगमगाता रहे
दीप जलता रहे
उजास लाता रहे।

✓यशवन्त माथुर©

🪔आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🪔

06 October 2024

देहरी पर अल्फ़ाज़ ......

मन की देहरी पर
लिखे कुछ अल्फाज़ 
जब उसे लांघ कर
परिकल्पना के
सामने आते हैं....
संकोच से
संकुचित हो जाते हैं
सिर्फ ये सोचकर
कि अगर उन्हें कह दिया गया
किसी से
तो क्या होगा?
क्या तूफान आएगा...?
या बनी रहेगी...
शांति?
या कि बस
कलम की नोंक तक 
आने के पहले ही
उन्हें उड़ कर
कहीं खो जाना होगा
समय रेखा के
उसपार की
अदृश्य सर्जना में।

✓यशवन्त माथुर©
06/09/2024

01 September 2024

हमने वो दौर भी देखा है.......

हालातों के हाल तत्काल न मिला करते थे। 
तार के नाम से दिलो जान हिला करते थे। 

15 पैसे का पोस्टकार्ड हफ्तों घूमा करता था। 
'बैरंग' होता था कभी गुमा करता था। 

आवाजें आती थीं घरों से पुराने गानों की। 
आवभगत अच्छी होती थी आने वाले मेहमानों की। 

10वीं 12वीं का रिजल्ट अखबार में छपा करता था। 
3rd डिविज़न पाने वाला  कभी न पिटा करता था। 

माना कि एक दूरदर्शन था मगर संस्कारी था। 
सीधा-सादा था वो न अहंकारी था। 

उसमें थे 'हम लोग', 'चित्रहार' और 'रंगोली'। 
एकता के इस मंच पर थी हर भाषा और बोली। 

आवश्यकताएं सीमित थीं, लोग खुले में सोया करते थे। 
चांद सितारों के संग ख्वाबों में खोया करते थे। 

न इंटरनेट था न मोबाइल ही होता था हाथों में। 
पल बीत जाते थे छोटी सी मुलाकातों में।

तब न गूगल था, न गूगल ट्रांस्लेट हुआ करता था।  
हर पढ़ने वाला खूब मेहनत किया करता था।

बातें कई और भी हैं 'मॉर्टन' टॉफी की मिठास की। 
वो पसंद सबकी थी हर आम और खास की। 

हाँ! माना कि अपने आज को सबने सपनों से सजाया है। 
हमने वो दौर भी देखा है जिसने इसकी नींव को बनाया है। 


-यशवन्त माथुर©
 
01092024

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19 August 2024

क्या ऐसे ही भारत विकसित हो पाएगा ....?

बरसों की कमाई को 
जब तक बेचा जाएगा...
सार्वजनिक उपक्रमों को
जब तक निजी किया जाएगा...
जात-धर्म की बातों से
जब तक बांटा जाएगा...
मां-बहन बेटी का अस्तित्व
जब तक बच न पाएगा.....
कामगारों का खून 
जब तक चूसा जाएगा....
किसानों की फसलों को 
जब तक लूटा जाएगा....
बेरोजगारों युवाओं को 
जब तक पीटा जाएगा....
विरोधी स्वरों को सड़कों पर 
जब तक घसीटा जाएगा....
सच की बात को शासक 
जब तक  कुबूल न पाएगा....
गृहस्थी चलाने वाला महंगाई को 
जब तक भूल न पाएगा...
सोचिए!
क्या ऐसे ही
भारत विकसित बन पाएगा????

-यशवन्त माथुर©
 
19 अगस्त 2024

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15 August 2024

आजादी का दिन मुबारक

फुटपाथ पे हर रहने वाले को,
सांस हर एक गिन-गिन मुबारक।
जूठन ढूंढते लावारिस बचपन को,
हर सपने में टिफिन मुबारक।

आजादी का दिन मुबारक।

महंगाई में आटा गीला, 
गहने जैसी गैस मुबारक।  
साक्षर होना कोई न चाहे, 
पढ़ाई-लिखाई पर टैक्स मुबारक। 

आजादी का दिन मुबारक।

अन्नदाता किसान मर रहा, 
आंसुओं को उसका दुख मुबारक। 
खून चूस कर जो गुल्लक भरता,
उसको पल भर  सुख मुबारक। 

आजादी का दिन मुबारक। 

अपने घर मणिपुर जलता, 
लेकिन रशिया-यूक्रेन मुबारक।  
सच की आवाज़ बनने वालों को 
संसद का निष्कासन मुबारक। 

आजादी का दिन मुबारक।
आजादी का दिन मुबारक।



-यशवन्त माथुर©
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29 June 2024

अंतरिक्ष कार्यक्रम अच्छा है अगर .........

हमने 
बना दिया है 
कूड़ा घर 
इस दुनिया के पार 
सुदूर अंतरिक्ष को भी
कभी  
बे मतलब की 
तथाकथित 'खोजों'
का नाम देकर ,  
कभी 
इंसानों को भेजकर 
हम भरते हैं दंभ 
अपने 'विकास' के पथ का। 
ऐसा विकास 
जो चाँद, मंगल, बुध 
और हर ग्रह पर पहुँच कर 
धरातल पर 
भूख-गरीबी 
और बेरोजगारी से जूझते 
फुटपाथों पर सोने 
और जूठन खाने वाले 
हर इंसान को 
सिर्फ 
अफ़ीमी ख्वाब दिखाता है 
अपनी बस्ती बसाने के।
विज्ञान के नाम पर 
दुनिया का 
हर अंतरिक्ष कार्यक्रम 
हो सकता है   
सच्चा, सस्ता और अच्छा 
बशर्ते 
वह सीमित रहे 
सिर्फ रक्षा -
परस्पर सम्प्रेषण के 
अनुसंधान 
और विकास तक। 

-यशवन्त माथुर© 
29 जून 2024 

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25 June 2024

40 पार के पुरुष-3

40 पार के पुरुष
बंद कर देते हैं
नए सपने देखना
क्योंकि
उनके पुराने
अधूरे सपने
बाई फोकल
और प्रोग्रेसिव लेंस की
उधेड़बुन में
कहीं अटक कर
अनकहे 
और अनसुने ही
रह जाते हैं।
क्योंकि 
उनमें से कुछ
अपवादों की झिझक में
चाह कर भी
अपने जज़्बात 
कह नहीं पाते हैं।

40 पार के पुरुष
वर्तमान को
नियति मान कर
यथास्थिति में
पथरीले रास्तों पर
चलते हुए
विलुप्त हो जाते हैं
तथाकथित अपनों की 
याददाश्त की
परिधि से।

-यशवन्त माथुर©
 
25 जून 2024

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24 June 2024

सेलिब्रिटीज को जीने दो....

वो 
जो अपनी मेहनत से
पा लेते हैं
एक मुकाम
हमारे, आपके,सबके बीच
जो बन जाते हैं
'सेलिब्रिटीज' के रूप में
एक बड़ा नाम।
उन 
असाधारण लोगों का
एक जीवन
हम लोगों की तरह
साधारण भी होता है,
उनकी भी होती है
निजता और मर्यादा
हमारे, आपके घरों की तरह
उनके यहां भी
टंगे होते हैं
परदे
जिनके पार देखने की
कोशिश का
कोई कारण और हक 
हमें
तब तक नहीं
जब तक
उसका असर 
पड़ न रहा हो
देश-काल और,
आम जन मानस की 
आर्थिक-सामाजिक
परिस्थिति पर।

-यशवन्त माथुर© 
24 जून 2024

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23 June 2024

कुछ लोग-57

[कुछ लोग शृंखला की सारी पोस्ट्स यहाँ क्लिक करके देखी जा सकती हैं]


अक्सर 
हमारे आस-पास के 
वातावरण में 
वास्तविक रिश्तों से 
इतर भी 
कुछ लोग 
बना लेते हैं 
एक रिश्ता 
अपनत्व का 
अंतरंगता का...... 
इसलिए नहीं 
कि वे 
महसूस करते हैं 
वैसा ही 
बल्कि, इसलिए 
कि 
वे जान सकें 
जाने-अनजाने राज़ 
जिनको 
अपने स्वार्थ में 
कर सकें प्रसारित 
कहीं और 
किसी और की 
नापाक फ़ितरतों को 
पहुंचाने के लिए 
अंजाम तक। 
भेड़ के आवरण में 
भेड़िया का प्रतिरूप 
ऐसे कुछ लोग
अगर जल्द ही नहीं आए 
पहचान में 
तो कोई नहीं रोक सकता
अनपेक्षित 
विध्वंस को।  

-यशवन्त माथुर© 
23 जून 2024
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04 June 2024

लाइनमैन......

वो!
जो
नौतपा की 
झुलसाने वाली गर्मी में
चरम बिंदु को छूते
ताप के मान को
अपनी नियति जान कर
कंक्रीट के जंगलों में बसे
आधुनिक आदिमानवों की
विद्युत पूर्ति करने को
अपने अस्तित्व से खेलते हुए
अपशब्दों को झेलते हुए
चढ़ जाता है
लोहे के
ऊंचे दहकते खंबों पर
यह जानते हुए भी
कि यह गलती उसकी नहीं
बल्कि 
उन सभी की है
जो 
मानकों को
अतिक्रमित कर
आनंद लेते हैं
शीतल
वात अनुकूलन का।

वो!
जो
अतिवृष्टि
और घनघोर शीतलहर में 
पसीने से सराबोर होकर
उपभोक्ता के मान की 
सेवा करते हुए
झेलता है चीरहरण
अपने मान का
सम्मान का।

वो!
जो हर मौसम में
अपने कर्तव्यपथ पर
निलंबन और बर्खास्तगी की
तलवार की धार पर
सधे कदम रखकर
सिर्फ अपनी
सफल संविदा के लिए
रहता बेचैन है-

लाइनमैन है!
.
✓यशवन्त माथुर©,
31मई 2024

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05 May 2024

शब्द जो लिखे न गए.....


उभरे मन में लेकिन, 
समझे न गए
शब्द जो लिखे न गए। 

अंतस खुश हो या उदास हो,
भूख हो या प्यास हो,
ख्याल सांचों में ढले न गए,
शब्द जो लिखे न गए।

अधरों तक आकर भी, 
रूह को करीब पाकर भी, 
रहे अव्यक्त ही, कहे न गए, 
शब्द जो लिखे न गए। 

काल चक्र से हार कर,
उम्र के हर पड़ाव पर,
संकोच से उबरे न गए, 
शब्द जो लिखे न गए। 

अवचेतन कारा की कैद से, 
शमशान में मुक्ति पाकर,
राख होते अंग प्रत्यंग  की तरह, 
पंच तत्व में मिलते ही गए,
शब्द जो लिखे न गए। 


-यशवन्त माथुर© 
05 मई 2024 

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15 March 2024

हम सब सो रहे हैं....

लगता है
जैसे इस मतलबी दुनिया में
अपने भूत
और भविष्य को भूल कर
सिर्फ वर्तमान को ढो रहे हैं
गहरी नींद के आगोश में
हम सब सो रहे हैं।

नहीं मतलब इससे 
कि क्या हो रहा है-
क्या नहीं 
सिरहाने तकिये में दबे 
सपने खो रहे हैं 
गहरी नींद के आगोश में
हम सब सो रहे हैं।

यह और बात है 
कि दिन 
भले शवाब पर हो 
निहत्थे दरख्त भी 
हर सू  रो रहे हैं 
गहरी नींद के आगोश में
हम सब सो रहे हैं।

कहीं बेकारी-भूख 
औ मुफलिसी के 
इस अंधे दौर में 
बांधे आँखों पे पट्टी 
क्या नींव में बो रहे हैं?
गहरी नींद के आगोश में
हम सब सो रहे हैं।

-यशवन्त माथुर©
15 मार्च 2024

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02 March 2024

टैक्स पेयर कौन?

अक्सर हम पढ़ते-सुनते हैं कि टैक्स पेयर के पैसे से जो सुविधाएं सरकार आम जनता को देती है उनमें से अधिकांश बेवजह हैं। खासकर बात जब मुफ्त बिजली, राशन और अन्य सुविधाएं देने की आती है तब संभ्रांत वर्ग के अधिकांश लोग 'टैक्स पेयर के पैसे' का तर्क देने लगते हैं क्योंकि उनका मानना है कि देश के चुनिंदा अमीर लोग सरकार को टैक्स देते हैं जिसका बेजा लाभ सरकार मुफ्त सुविधाओं के रूप में आम जनता को देती है या राजनीतिक दल चुनावों के समय जनता को देने का वादा करते हैं।

आइए अब विचार करते हैं कि वास्तव में असल टैक्स पेयर है कौन? देश के चुनिंदा अमीर? या खुद आम जनता?

हम जानते हैं हमारे देश में दोहरी कर प्रणाली है जिसमे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों तरह के करों के माध्यम से सरकार को आय होती है जिसे वह बजट आवंटन के माध्यम से लोक कल्याणकारी एवं आवश्यक मदों में खर्च करती है।

कोई भी  उद्योगपति अपने उद्योग के लिए पूंजी जुटाने से लेकर अपनी वस्तु या सेवा के उत्पादन एवं अंतिम व्यक्ति तक वितरण के प्रत्येक स्तर पर किए जाने वाले हर व्यय के साथ ही उस पर देय प्रत्येक कर को अंततः आम जनता से ही वसूल करता है।

इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि आपने 5₹ की एक चॉकलेट खरीदी। अब उसके रैपर पर कीमत वाली जगह पर क्या लिखा मिलेगा?  जाहिर है वहां लिखा होगा- MRP Rs. 5 (Inclucive of all taxes) अर्थात उस चॉकलेट का ' अधिकतम खुदरा मूल्य 5₹ है जिसमे सभी तरह के कर यानी टैक्स शामिल हैं। (यहां यह भी बताता चलूं कि 5₹ की इस कीमत में टैक्स के साथ ही उस एक अदद को बनाने में लगने वाली सामग्री, बिजली, ढुलाई, मजदूरी, निर्माता से लेकर खुदरा विक्रेता के लाभ सहित कई अन्य तरह के व्यय भी शामिल रहते हैं।) मतलब साफ है कि अगर आपने 5₹ की भी कोई चीज खरीदी तो आपने सरकार को टैक्स दिया। और उस पर होने वाला प्रत्येक व्यय भी निर्माता ने हम यानी जनता से ही वसूल किया।

यही उदाहरण कम से कम और ज्यादा से ज्यादा कीमत की हर वस्तु और सेवा पर लागू होता है जिसे आम जनता खरीदती है।

अब खुद ही सोचिए कि जब वास्तविक टैक्स पेयर तो हम और आप यानी आम जनता है तो जनता के ही पैसे से जनता को दी जाने वाली मुफ्त या सब्सिडी वाली वस्तु या सेवा पर किसका हक पहला हुआ? देश की सारी जनता टैक्स पेयर हुई या नहीं?

तथाकथित 'टैक्स पेयर' का रोना रोने वालों को यह भी याद रखना चाहिए कि  जनता तो हर चीज पर टैक्स देती ही है, लेकिन जनता द्वारा अदा किए जाने वाले टैक्स की बचत पूंजीपति विभिन्न टैक्स सेविंग स्कीमों में निवेश करके करते हैं। यानी जनता द्वारा अदा किए गए पूरे टैक्स का पूरा लाभ जनता को कभी मिलता ही नहीं।

यशवन्त माथुर
2 मार्च 2024

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11 February 2024

कहा नहीं जा सकता...

अनिश्चित जीवन 
कब थम जाए
कब
स्मृतियों के अवशेष 
दे जाए
कहा नहीं जा सकता।

कहा नहीं जा सकता
कि कब 
ये शब्द लिखती हुई उंगलियां
कांपने लगें
होठ थरथराने लगें
आंखें प्रिय को ढूंढने लगें
और सांसें
उखड़ने लगें।

कहा नहीं जा सकता
कि कब
सुबह एक पल में बदल जाए
सूर्योदय के साथ ही
सूर्यास्त भी 
दस्तक दे जाए।

कहा नहीं जा सकता
कि कब
अपनी धुरी पर घूमती धरती
किसी धूमकेतु से टकराए
और 
पल दर पल
बीतता हुआ
समय  पुनः भटक कर
अपना इतिहास दोहराए।

कहा नहीं जा सकता
कि 
इस यशपथ पर 
कुछ भी 
कभी भी
हो सकता है घटित
जो इसे बदल दे
और ले जाए
यक्ष प्रश्नों से भरे
किसी अदृश्य
एकांत पथ की ओर।

-यशवन्त माथुर©
11 फरवरी 2024
 
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04 February 2024

40 पार के पुरुष - 2

जिम्मेदारियों का बोझा ढोते 
40 पार के पुरुष
जीवन के 
तिलिस्मी रंगमंच पर
चाह कर भी नहीं निभा सकते
खुद का मन पसंद किरदार
वो तो बस
कठपुतली होते हैं
नाचते रहते हैं 
किसी और की 
थामी हुई डोर के सहारे
ढूंढते रहते हैं किनारे
करते रहते हैं
पुरजोर कोशिशें 
जानकर की हुई 
अनजान गलतियों के 
निशान मिटाने की।
40 पार के
कुछ पुरुषों की
पटकथा 
फूलों के सपनों
और कांटों की वास्तविकता 
को खुद में समेटे हुए
सिर्फ अनिश्चित ही होती है।

-यशवन्त माथुर© 
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01 February 2024

एक नई शुरुआत करें...

मुश्किल भूलना
बीता काल मगर
फिर चलने की 
बात करें

एक नई शुरुआत करें।

जीवन खुद में 
कठिन गणित
जिसका हल
हालात करें

एक नई शुरुआत करें।

सूर्योदय कर रहा 
प्रतीक्षा
उजास से
हर रात भरें।

एक नई शुरुआत करें।

-यशवन्त माथुर©

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11 January 2024

पॉलीकैब इंडिया के शेयर गुरुवार को 21% की गिरावट के साथ बंद


पॉलीकैब इंडिया के शेयर गुरुवार को 21% की गिरावट के साथ बंद हुए, जिससे 2024 की शुरुआत के बाद से उनकी गिरावट बढ़ गई। आयकर विभाग ने बुधवार को एक बयान जारी किया जहां उसने एक केबल और तार निर्माण कंपनी में तलाशी अभियान की बात कही।

मंगलवार को जब खोज अभियान की रिपोर्ट पहली बार सामने आई थी तब पॉलीकैब के शेयरों में 9% की गिरावट आई थी। कंपनी ने उस शाम बाद में एक बयान जारी कर अपनी ओर से किसी भी कथित कर चोरी से इनकार किया।

पॉलीकैब के लिए वर्ष की नकारात्मक शुरुआत के बावजूद, बाजार के अधिकांश शेयर स्टॉक को लेकर उत्साहित बने हुए हैं। कंपनी पर नज़र रखने वाले 31 विश्लेषकों में से 60% से अधिक ने स्टॉक पर "खरीदने" की सिफारिश की है, जबकि छह ने क्रमशः "होल्ड" और "सेल" रेटिंग दी है।

दरअसल, पिछले साल दिसंबर तक लगातार तीन महीनों तक पॉलीकैब पर "बेचने" की सिफारिशों की संख्या में गिरावट आई है।

पॉलीकैब पर आम सहमति मूल्य लक्ष्य बुधवार के समापन स्तर से स्टॉक में 14.5% की संभावित वृद्धि का संकेत देता है। विश्लेषकों के बीच, जेफ़रीज़ ने वर्तमान में पॉलीकैब पर ₹7,000 का मूल्य लक्ष्य रखा है, जो सड़क पर सबसे अधिक है, जो बुधवार के बंद से 42% की संभावित वृद्धि दर्शाता है।

अप्रैल 2019 में सूचीबद्ध होने के बाद से पॉलीकैब दस-बैगर स्टॉक रहा है। स्टॉक की आईपीओ कीमत ₹538 थी और इसे 51 गुना से अधिक सब्सक्राइब किया गया था, जिससे यह वर्ष का पांचवां सबसे अधिक सब्सक्राइब किया गया आईपीओ बन गया। उस वर्ष स्टॉक 84% बढ़ गया था। दिसंबर 2023 में शेयरों ने ₹5,733 का रिकॉर्ड उच्च स्तर बनाया, जिससे आईपीओ मूल्य पर 10 गुना रिटर्न मिला।

इस साल की शुरुआत को छोड़कर, पॉलीकैब के शेयरों ने सूचीबद्ध होने के बाद से हर साल सकारात्मक वार्षिक रिटर्न दिया है, जिसमें 2023 और 2021 में 100% से अधिक का रिटर्न शामिल है।