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17 January 2025

हम क्यूँ उलझ रहे ?

हम 
क्यूँ उलझ रहे 
आपसी द्वन्द्व में ?
अपनी 
महत्वाकांक्षाओं के कारण 
क्यूँ 
बिगाड़ रहे 
रूप-रेखा- 
और सोच 
एक पूरी पीढ़ी की? 
आखिर
भविष्य को  
क्या हासिल होगा 
अपने इस वर्तमान से 
सिवाय इसके 
कि 
टुकड़ों में बँटती 
इंसानियत की 
एक-एक झिर्री 
अगर फिर कभी 
जुड़ भी गई 
तो क्या 
उस पर लगे 
अनंत पैबंद 
छुप पाएंगे 
नकली 
मुखौटों के भीतर ? 

-यशवन्त माथुर©
 
17 जनवरी 2025 

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