हम
क्यूँ उलझ रहे
आपसी द्वन्द्व में ?
अपनी
महत्वाकांक्षाओं के कारण
क्यूँ
बिगाड़ रहे
रूप-रेखा-
और सोच
एक पूरी पीढ़ी की?
आखिर
भविष्य को
क्या हासिल होगा
अपने इस वर्तमान से
सिवाय इसके
कि
टुकड़ों में बँटती
इंसानियत की
एक-एक झिर्री
अगर फिर कभी
जुड़ भी गई
तो क्या
उस पर लगे
अनंत पैबंद
छुप पाएंगे
नकली
मुखौटों के भीतर ?
17 जनवरी 2025
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