कानों में गूँजती
अनगिनत
स्वर लहरियों के साथ
कहीं रास्ते पर
चलते कदम
अक्सर
ठिठक कर रुक जाते हैं
जब नज़रों के सामने
फुटपाथ
आ जाते हैं।
हाँ
सड़क किनारे के
वही फुटपाथ
जो
कुछ लोगों के रहने का
ठौर बनकर
जीवन का असली रंग
दिखा जाते हैं।
इन फुटपाथों पर लगे
ईंटों के तकिये
कंक्रीट के बिस्तर
और किसी 'और' की
मैली-तिरस्कृत चादर
काफी होती है
ढकने को
किसी का आँचल
या देने को
ममत्व की छाँव
जिसमें पल-बढ़ कर
आकार लेती है
एक नई पीढ़ी
डामर की
बंजर सड़कों पर चलते
हम जैसे
बेजान -बेदिल-
बोझिल लोगों को
लिखने के लिए
नया विषय
और कुछ शब्द
देती हुई।
18 जनवरी 2025
एक निवेदन-
इस ब्लॉग पर कुछ विज्ञापन प्रदर्शित हो रहे हैं। आपके मात्र 1 या 2 क्लिक मुझे कुछ आर्थिक सहायता कर सकते हैं।
No comments:
Post a Comment