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03 January 2025

उम्मीदें

कभी टूटती
कभी बढ़ती
कभी घटती उम्मीदें
साथ जुड़ती
कभी साथ छोड़ती
उम्मीदें
दिमाग में भरकर
बोझ जिस्म पर बनती हैं
गहरे ज़ख्मों से गहरी
होती हैं उम्मीदें।

✓यशवन्त माथुर©

2 comments:

  1. बनी रहें उम्मीदें | सुन्दर |

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  2. ऐसी उम्मीदों का न होना ही अच्छा है

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