03 January 2025
उम्मीदें
कभी टूटती
कभी बढ़ती
कभी घटती उम्मीदें
साथ जुड़ती
कभी साथ छोड़ती
उम्मीदें
दिमाग में भरकर
बोझ जिस्म पर बनती हैं
गहरे ज़ख्मों से गहरी
होती हैं उम्मीदें।
✓यशवन्त माथुर©
2 comments:
सुशील कुमार जोशी
3 January 2025 at 20:44
बनी रहें उम्मीदें | सुन्दर |
Reply
Delete
Replies
Reply
Anita
4 January 2025 at 10:41
ऐसी उम्मीदों का न होना ही अच्छा है
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
‹
›
Home
View web version
बनी रहें उम्मीदें | सुन्दर |
ReplyDeleteऐसी उम्मीदों का न होना ही अच्छा है
ReplyDelete