जो घूम रहा
लावारिस बचपन
बना रहे
उनका लड़कपन
बस इतना वर मिले
हर मुरझाया चेहरा खिले।
हो विस्तार
सिमटी समृद्धि का
न किसी को
भेद भाव मिले
बस इतना वर मिले
सबको अमन-चैन मिले।
जैसे बिछी है चादर
खिली सरसों की
जैसे हर क्यारी में
गेंदा फूल
ऐसे ही हर जन-मन के
चेहरे को मुस्कान मिले।
बस इतना वर मिले।
(वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ)
02 फरवरी 2025
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